प्राकृतिक की खूबसूरत दुनिया में
प्राकृतिक की खूबसूरत दुनिया में
शाम हो चली थी, सभी पक्षियां अपने-अपने घौंसला की ओर लौट रही थी । सूरज की लालिमा धीर-धीरे अंधेरों में विलीन हो रही थी और सूरज खुद पहाड़ों की वादियों में छुपती जा रही थी मानो वह आखिरी बार अलविदा कह कर जा रहा हो...... दूर खेलते बच्चों की किलकारियां अब थोड़ी-सी मंद पड़ गई थी शायद अब वह भी अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान कर चुके थे।
अब बारी थी बहती हवाओं की जो शायद वह भी अपनी ही बारी की इंतजार में थी और मंद-मंद मुस्कराते हुए खुबसूरत फूलों को छूकर निकल जाती है और अपने साथ फूलों की मनमोहक खुशबुओं को साथ लेकर आसपास के वातावरण में बांटती फिरती है । ऐसा लग रहा था मानो जैसे वह उस खूबसूरत खुशबुओं वाली फूलों के "अच्छे गुणों" के बारे में अपने आस-पड़ोस के लोगों को बता रही हो ।
और जहां "अच्छे गुण" हों वहां भीड़ लगनी तो लाजमी ही थी शायद यही वजह है कि अब भी वहां पर सैंकड़ों तितलियां-भौंरा और चिंटियों की भीड़ लगी हुई थी ।
एक दिलचस्प बात यह भी थी कि वहां पर गिलहरियों की एक छोटी-सी टोली भी दिख रही थी जो एक खूबसूरत और सुखी परिवार होने की मिसालें दे रही थी । वहां पर मौजूद हजारों
चिटियां लगातार अपने कामों में व्यस्त थी और वह मिलजुलकर उस काम को करने में जुटी हुई थी और जैसे-जैसे समय बितता जाता वैसे ही वह अपने कामों की रफ्तार को और बढ़ाने की कोशिश करते मानो वह आज के काम को कल के रूप में नहीं टालना चाहते हों ।
चिंटियों की अपने कामों के प्रति अटल निष्ठा और एकता वाली गुण मुझे बहुत ज्यादा पसंद आया ।
मैं घर के बाहर एक ऊंची चट्टान पर बैठकर ये सब नजारा देख रहा था और मन ही मन मैं अपने आप पर मुस्करा रहा था कि कितनी अजीब है ये दुनिया सब पलभर के लिए आते हैं और अपने-अपने कर्म करके वापस लौट जाते हैं इस झूठे उम्मीद के साथ कि फिर कल वापस आयेंगे ।
लेकिन सच कहूं तो आज मैंने प्राकृतिक की लिलाओं से बहुत कुछ सीखा जो मन में एक गहरी छाप छोड़ दी थी और मुझे एक अच्छे *इंसान* बनने के लिए प्रेरित कर रहे थे जो कभी मैंने किताबों से नहीं सीखा था वह आज मैं अपने आंखों के सामने हूबहू देख रहा था ।
काश !
हम सभी मानव भी लोभ, लालच, छल-कपट की भावनाओं को त्याग कर प्यार, एकता, मानवता की गुण अपनाकर इनकी तरह जीना सीखें तो कितना अच्छा होता ।
शायद, आज *मानवता* के गुण-गान हर जगह होती और हर कोई इसके समान भागीदार बनते ।
मैं आगे सोच ही रहा था कि मां की आवाज़ आ जाती है :- बेटा ! वहां क्या कर रहे हो ????
देखो बाबूजी काम से आ गये हैं ।
फिर मैं आ रहा हूं मां कहकर अपने घरों की ओर चल पड़ा ।
घर पहुंचकर मैं अपने पापा से मिला फिर ध्यान मग्न होकर अपने पढ़ाई पर जुट गया ।
पर आज मैं सच में बहुत खुश था क्योंकि मेरा मन शांत और प्रफुल्लित होकर खिल रहा था शायद वर्षों बाद मैंने फिर से अपने आप को "अपनी खूबसूरत दुनिया" में जो पाया है ।
तो ये थे दोस्तों मेरे post ....... और हां Comment Box में जरूर बताना आप सबको कैसे लगी मेरी ये post ताकि मैं इस तरह के post हमेशा आपलोगों के लिए लिखता रहूं ।
written by
Lakshman Tudu
Tumhara ek ek shabd ek ek pankti padne me bahut ajib sa loga agar Har koi eise hi soche na to duniya ka sundarj muhsus hone log jayega
जवाब देंहटाएंTq....Yrr💝
हटाएंthanks bro
जवाब देंहटाएंMst wc....!!!
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